अन्य खबरेंगढ़वाल मंडल

पहाड़ों की रानी मसूरी का 15 फीसदी हिस्सा उच्च जोखिम में

मसूरी। उत्तराखंड की “पहाड़ों की रानी” कही जाने वाली मसूरी अब सुंदरता के साथ-साथ भय का प्रतीक भी बनती जा रही है। 15 सितंबर को हुई भारी बारिश और भूस्खलन की घटनाओं ने वैज्ञानिकों के उस हालिया अध्ययन को सच साबित कर दिया है जिसमें चेतावनी दी गई थी कि मसूरी का एक बड़ा हिस्सा अब भूस्खलन के अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्र में आ चुका है। यह खुलासा देश के प्रमुख अनुसंधान केंद्र वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के विस्तृत अध्ययन में हुआ है।
यह अध्ययन “पृथ्वी प्रणाली विज्ञान पत्रिका जनरल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित हुआ है। इसे वैज्ञानिकों ने आधुनिक तकनीकों की मदद से तैयार किया है। इस अध्ययन में भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), उपग्रह चित्र, और आँकड़ों पर आधारित विश्लेषण (सांख्यिकीय विधियां) का उपयोग कर भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र तैयार किया गया। वैज्ञानिकों ने ढलानों की दिशा, मिट्टी की बनावट, चट्टानों के प्रकार, भूमि उपयोग, जल निकासी प्रणाली और वर्षा के पैटर्न जैसे कई तत्वों का विश्लेषण किया। अध्ययन के प्रमुख बातें हैं कि मसूरी और उसके आसपास का 15 प्रतिशत क्षेत्र अत्यधिक खतरे (उच्च जोखिम) में है। 29 प्रतिशत क्षेत्र मध्यम खतरे वाले हिस्से में आता है। 56 प्रतिशत क्षेत्र कम या बहुत कम खतरे की श्रेणी में है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अध्ययन मसूरी ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालय क्षेत्र के लिए चेतावनी की घंटी है। अध्ययन के अनुसार, मसूरी की ढलानें क्रोल चूना-पत्थर नामक चट्टानों से बनी हैं, जो बेहद भंगुर (फटी हुई और कमजोर) हैं। वाडिया संस्थान के एक वरिष्ठ भूवैज्ञानिक डॉ एससी वैदेस्वरन ने बताया इन ढलानों का झुकाव कई जगहों पर 60 डिग्री से भी अधिक है। जिससे थोड़ी सी बारिश या भूकंपीय हलचल से भी मिट्टी खिसक जाती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि खतरे का कारण केवल प्राकृतिक नहीं है बिना योजना के निर्माण, सड़क कटाई और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने ढलानों को अस्थिर बना दिया है।
अध्ययन में जिन इलाकों को सबसे संवेदनशील बताया गया है, उनमें बाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्पटी फॉल, खट्टा पानी, लाइब्रेरी रोड, झडीपानी, गलोगीधार और हाथीपांव शामिल हैं। 15 सितंबर की बारिश में इन क्षेत्रों में सड़कें धंस गईं, घरों में दरारें आईं और कुछ हिस्सों में लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजना पड़ा। वैज्ञानिकों ने अपने शोध के अंत में कुछ तत्काल आवश्यक सुझाव भी दिए हैं। मसूरी के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में नया निर्माण पूरी तरह रोका जाए। सड़क कटाई और विस्फोट (ब्लास्टिंग) पर कड़ा नियंत्रण लगाया जाए। वनों की कटाई पर रोक और सघन वृक्षारोपण किया जाए। हर निर्माण परियोजना से पहले भूगर्भीय जांच अनिवार्य की जाये। जल निकासी व्यवस्था को मजबूत किया जाये।
पर्यावरण लेखक जय सिंह रावत कहते हैं कि मसूरी पर किया गया यह अध्ययन केवल वैज्ञानिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि चेतावनी है। हिमालय जैसे नाजुक क्षेत्रों में विकास तभी टिकाऊ हो सकता है जब हम प्रकृति की सीमाओं को समझें, अगर ऐसा नहीं हुआ, तो मसूरी जैसे सुंदर शहर आने वाले वर्षों में बर्बादी का शिकार हो सकते हैं। स्थानीय निवासी दुकानदार सुनील राणा बताते हैं कि हर साल नई सड़कें और होटल तो बनते हैं, पर जल निकासी और पहाड़ की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं देता। हमें डर है कि अगली बारिश और बड़ी त्रासदी ला सकती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button