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गंगोत्री हाईवे चौड़ीकरण को विभिन्न स्तरों से मिली मंजूरी

देहरादून। उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री तक सड़क चौड़ीकरण की तैयारी अब तेज़ हो गई है। लंबे समय से अटके इस रणनीतिक प्रोजेक्ट को विभिन्न स्तरों से स्वीकृति मिल चुकी है। लेकिन मंजूरी के साथ ही एक गंभीर पर्यावरणीय बहस शुरू हो गई है, क्योंकि यह पूरा इलाका भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन के दायरे में आता है। जहां बड़े निर्माण और पेड़ों की कटाई पर सामान्यतः रोक रहती है।
कटाई व ट्रांसलोकेशन की प्रक्रिया तय चिह्नित किए गए 6822 पेड़ों में से 4366 पेड़ों का ट्रांसलोकेशन किया जाएगा जबकि 2456 पेड़ों को पूरी तरह काटना पड़ेगा। ट्रांसलोकेशन पर 324.44 लाख रुपये का खर्च स्वीकृत हुआ है, जबकि पेड़ कटान की लागत वन विभाग को उपलब्ध कराई जाएगी। इन पेड़ों में 0 से 30 व्यास वर्ग तक के वृक्ष शामिल हैं।
गंगोत्री-उत्तरकाशी मार्ग के चौड़ीकरण प्रस्ताव पर तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक समीर सिन्हा पहले ही अनुमोदन दे चुके हैं। पीसीसीएफ लैंड ट्रांसफर एस.पी. सुबुद्धि ने भी इस प्रोजेक्ट को “बेहद महत्वपूर्ण” मानते हुए अपने स्तर से स्वीकृति की पुष्टि की है।
उत्तरकाशी अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा हुआ जिला है। सेना की आवाजाही, आपदा प्रबंधन और तीर्थयात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सड़क को मज़बूत और चौड़ा बनाना केंद्र व राज्य सरकार के लिए प्राथमिकता माना जा रहा है। सरकारी तर्क है कि बेहतर कनेक्टिविटी से आपातकालीन सेवाओं और सामरिक गतिविधियों को बड़ा फायदा मिलेगा।
राष्ट्रीय राजमार्ग-34 के भैरोघाटी से झाला तक 20.600 किमी क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण होना है। इसी ज़ोन में 41.9240 हेक्टेयर क्षेत्र को गैर-वानिकी उपयोग के लिए अनुमति मिली है। इसके बदले 76.924 हेक्टेयर भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण किया जाएगा। अधिकारियों का अनुमान है कि ज़मीनी स्तर पर निर्माण शुरू होने में अभी लगभग एक वर्ष का समय लग सकता है।

इको-सेंसिटिव ज़ोन में कैसे मिली अनुमति?
2012 में केंद्र सरकार ने गोमुख से उत्तरकाशी तक 4179.59 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया था। हालांकि, 2018 में संशोधन किया गया, जिसमें भूमि उपयोग परिवर्तन, पहाड़ियों के कटान और असाधारण परिस्थितियों में ढलानों पर निर्माण जैसी गतिविधियों को सीमित दायरे में अनुमति देने का उल्लेख जोड़ा गया। यह संशोधन मुख्य रूप से चारधाम ऑलवेदर रोड प्रोजेक्ट को ध्यान में रखकर किया गया था। इसके बाद 17 जुलाई 2020 को केंद्र ने 135 किमी क्षेत्र के क्षेत्रीय मास्टर प्लान को मंजूरी दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी स्वीकृति दी। हजारों पेड़ों के हटाए जाने की जानकारी सामने आने के बाद पर्यावरणविद गंभीर चिंता जता रहे हैं। भागीरथी बीईएसजेड निगरानी समिति की सदस्य मल्लिका भनोट ने पहले भी चेतावनी दी थी कि इस क्षेत्र का पर्यावरण अत्यंत संवेदनशील है और किसी भी बड़े निर्माण से प्राकृतिक संतुलन पर असर पड़ सकता है। बढ़ते विरोध के बीच यह मुद्दा राज्यसभा तक पहुंच गया है, जहां छत्तीसगढ़ की एक सांसद ने केंद्र सरकार से पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने की मांग की है।

पहले भी रद्द हो चुकी थीं परियोजनाएँ
2006 में गंगा-भागीरथी तट पर तीन जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी मिली थी, लेकिन बड़े जनविरोध के बाद उन्हें बंद करना पड़ा। इसी पृष्ठभूमि में 2012 में ठमर््ै घोषित किया गया था ताकि गंगा घाटी के पर्यावरण को किसी भी बड़े खतरे से बचाया जा सके।

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