अन्य खबरेंगढ़वाल मंडल

प्राइवेट स्कूलों की मनमाने शुल्क वृद्धि के खिलाफ कठोर कानून बनाने की मांग

देहरादून। संयुक्त नागरिक संगठन द्वारा आयोजित संवाद में दून की सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने, प्राइवेट स्कूलों के संचालकों द्वारा विभिन्न प्रकार के मनमाने शुल्क लिए जाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने हेतु राज्य में उत्तर प्रदेश की तरह,कठोर कानून बनाए जाने की मांग की। संगठन का कहना था कि प्राइवेट स्कूलों तथा व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओं द्वारा अभिभावकों से शिक्षण शुल्क,परीक्षा शुल्क आदि में मनमानी बढ़ोतरी पर लगाम लगाने के लिए उत्तर प्रदेश की तरह “स्ववित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय शुल्क अधिनियम 2018” की तरह उत्तराखंड में भी सरकार को कठोर एक्ट लागू करना पड़ेगा अन्यथा अभिभावकों का आर्थिक शोषण जारी रहेगा। सरकारें बदली कई मुख्यमंत्री भी बदल गए पर राज्य में 2006 से फाइलों में धूल फांक रहा “उत्तराखंड गैर सहायता प्राप्त निजी व्यावसायिक शिक्षण संस्थान (प्रवेश विनिमय एवं शुल्क निर्धारण)अधिनियम 2006घ्का प्रारूप आज 18 साल बाद भी अंतिम सांसे गिन रहा है।
अधिनियम हालांकि व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों के लिए प्रस्तावित था परंतु इसे भी अमली जामा पहनाने में जनप्रतिनिधियों, नौकरशाही के हाथ कांप गए। व्यावसायिक हो या गैर व्यावसायिक सभी स्कूलों को कानून के दायरे में लाना जरूरी है। अभिभावकों की शिकायतों के लिए टोल फ्री नंबर व वेबसाइट लांच किया जाना महज खाना पूरी है,शिक्षा विभाग तथा प्रशासन के अधिकारियों के पास कठोर कानून के अभाव में कोई स्पष्ट अधिकार ही नहीं है।इनको शिकायतों की जांच के आधार पर स्कूलों की मान्यता खत्म करने,आर्थिक दंडात्मक कार्रवाई करने के स्पष्ट अधिकार ही जब नहीं है तो केवल बार बार निर्देश देने,नोटिस जारी करने,चेतावनी देने जैसी कार्यवाही महज खानापूरी साबित हो चुकी है।
अब बंदर घुड़की से काम नहीं चलने वाला है। स्कूलों द्वारा विशेष दुकानों से ही किताबें,जूते, मौजे यूनिफॉर्म खरीदने की बाध्यता,स्पेशल एक्टिविटी, स्मार्ट क्लास फीस, कंप्यूटर फीस, विकास शुल्क, इवेंट चार्ज, मेंटेनेंस फीस के नाम पर अभिभावकों का शोषण अन्यायपूर्ण व्यवस्था की पराकाष्ठा है। जबकि ये सभी शुल्क शिक्षण शुल्क में समाहित होने चाहिए। सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाएं निजी स्कूलों के समान कमतर होने पर स्कूलों में छात्रों की कमी को गठित सरकारी जांच समिति को सरकारी स्कूलों की दयनीय स्थिति का खुद पता है। अब जांच के नाम पर केवल खाना पूरी करने की जगह सरकार को गिरती छात्र संख्या को बढ़ाने के लिए निजी स्कूलों की व्यवस्थाओं से सीख लेनी होगी,तभी अभिभावकों का निजी स्कूलों से मोह भंग हो सकेगा। संवाद में अभिभावक संगठन (एनएपीएसआर)के आरिफ खान ने बताया की शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2011 के प्रावधानों के उल्लंघन की भी शिकायतो पर जांच तो हुई पर शिक्षा विभाग दंडात्मक कार्रवाई करने में असहाय बना रहा।इनका कहना था की बाल अधिकार संरक्षण आयोग, बाल कल्याण समिति आदि यहां कार्यरत हैं परंतु ये भी छात्रों के आर्थिक शोषण को लगाम नहीं लगा सकी। ऐसे में कठोर कानून जरूरी है। संवाद में जिला मजिस्ट्रेट सविन बंसल द्वारा अभिभावकों से मनमानी फीस वसूलने की शिकायत पर उठाए गए कठोर कदमों की सराहना करते हुए राज्यपाल तथा मुख्य सचिव से मांग की गई कि जनहित को सर्वाेच्च प्राथमिकता देने वाले जिलाधिकारी सविन बंसल को राजधानी में ही आगामी 3 साल की स्थाई नियुक्ति दी जाए। अन्यथा कुव्यवस्थाओं पर अंकुश नहीं लग सकेगा।दून वासियों के सामने ऐसे देशभक्त समर्पित अधिकारी का कार्यरत होना भ्रष्टाचार मुक्त राज्य की मुख्यमंत्री की परिकल्पना को धरातल पर उतारने में जी जान से जुटे हैं। संवाद में राज्यपाल तथा मुख्य सचिव को ज्ञापन भेजने और इनसे मिलने का भी निश्चय किया गया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button