गढ़वाल मंडल

गढ़वाल के व्यापार और राजनीति का केंद्र बिंदु रहा दुगाड्डा

जाने कुछ ऐतिहासिक नगरों के बारे में गढ़वाल की सबसे पुरानी मंडी दुगड्ड

कोटद्वार: कोटद्वार से लगभग 15 किलोमीटर दूर यमकेश्वर विधानसभा में बसा यह कस्बा चारों ओर से वनाच्छादित छोटी-छोटी पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा है । यह कस्बा लंगूगड़ और शैलगड़ जैसी दो नदियों का संगम स्थल है जो आगे जाकर खो नदी के रूप में राम गंगा से मिल जाती है। पुराने कागजातों में दुगड्डा बहेड़ी का तप्पड़ कहा गया है, जो कभी लंगूरगढ़ किले के अंतर्गत एक शिविर था। निकटवर्ती चंद्रा नामक पर्वत स्तिथ है , जिससे माल-कांगनी (मालू) नदी का उद्गम होता है। विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर जैसे हठी, मृग यहाँ तक की आदमखोर बाघो के लिए भी दुगड्डा प्रसिद्ध है ।

आज इसकी स्थिति को देखकर यह कल्पना करना भी सम्भव नही है कभी यह स्थान गढ़वाल के व्यापार व राजनीती का मुख्य केंद्र रहा होगा। ‌इतिहास में लंगूरगढ़ व महाबगड़ की सैन्य टुकड़ियों की सतर्कता के कारण इस क्षेत्र में रोहलियो के छुटपुट हमलों के अलावा 1804 तक (गोरखों के दूसरे आक्रमण तक) गढ़वाल राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित रही। पर्वतीय तथा मैदानी क्षेत्र के मध्य में स्थित होने व संचार का केंद्र होने के कारण दुगड्डा सारे गढ़वाल की एक मुख्य व्यापारिक मंडी बन गया। जब देहरादून व ऋषिकेश जैसे शहर आस्तित्व में नही थे उस समय दुगड्डा में दूरस्थ तिब्बत तथा सीमांत क्षेत्रो के व्यापारी यहाँ भेड़ बकरियो व घोड़े खच्चरों पर तिब्बती ऊन, शाल,गलोचे, कस्तूरीशहद,शिलाजीत इत्यादि चीजे मंडी तक पहुँचाते तथा बदले में गुड़ सूती कपड़ा आदि महत्वपूर्ण वस्तुएं वापिस ले जाते ।

भावर के बांस ,घोड़े खच्चरों व भेड़ बकरियों की दुगड्डा मुख्य मंडी बन गया था। सन् 1684 ई. में महाराज फतेहशाह एवं दिल्ली के सम्राट औरंगजेब के मध्य प्रथम बार राजदूतों का आदान प्रदान हुआ जिससे व्यापार में स्थायित्व आया और दुगड्डा मंडी का गढ़वाल में एकाधिकार हो गया । सन् 1799 के आस पास गोरखाओ ने हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के लिए गढ़वाल के लंगूरगढ़ दुर्ग पर दुगड्डा होते हुए प्रथम बार आक्रमण किया पर यहाँ के वीर जवानों ने उनके दांत खट्टे कर दिए। व गौरखा सेना भागकर काली नदी के तट पर चली गयी । लेकिन 1803 के आस पास गोरखाओ ने पूर्ण संगठित होकर पुनः आक्रमण किया जिसके परिणाम स्वरुप उनका गढ़वाल पर एकाधिकार हो गया ,और दुगड्डा मंडी को पूर्णतः नष्ट कर दिया गया। पर अंग्रेजो के आगमन के बाद गोरखाओ की एक न चली और उन्हें अंग्रेजो द्वारा हार का सामना करना पड़ा ।

सन् 1894 में कुमाऊँ के आयुक्त के अधीन गढ़वाल में प्रथम स. आयुक्त की नियुक्ति हुई। फिर मैदानी इलाको से जोड़ने वाले मार्गो को दुरुस्त किया गया ,उसके बाद यहाँ आगमन हुआ बड़े बड़े मारवाड़ी व देशी व्यापारियों का जिन्होंने यहाँ अपने व्यापार की स्थापना की और दुगड्डा दुबारा से व्यापार का केंद्र बन गया तथा इसे नगर क्षेत्र घोषित कर दिया गया, जो अब नगर पालिका है। जैसे जैसे समय बीतता गया अंग्रेजी शासन अपनी निरंकुशता बढ़ाता गया जिससे अंग्रेजो का विरोध होने लगा । अंग्रेजो का विरोध सर्वप्रथम पं. बद्रीदत्त पाण्डे के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ, इस आंदोलन की तृतीय मुख्य बैठक दुगड्डा-कोटद्वार में आयोजित की गयी , दुगड्डा में ही सन् 1920 में पं. अनुसूया प्रसाद बहुगुणा और मुकुन्दीलाल ने कांग्रेस की सदस्यता ली तथा दुगड्डा से ही संगठन को पूरे गढ़वाल में बढ़ाया ।

दुगड्डा में ही 31 मई 1930 को विराट कांग्रेस सम्मेलन भी हुआ जिसकी अध्यक्षता पं. गोविन्द बल्लभ पन्त ने की। सन् 1936 में दुगड्डा कांग्रेस कमेटी के निमंत्रण पर पं. जवाहरलाल नेहरू दुगड्डा पहुँचे तथा जगमोहन सिंह नेगी जी को यहाँ का प्रथम विधायक बने। 19 फरवरी 1936 को तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त द्वारा दुगड्डा से कर्णप्रयाग मार्ग का उद्घाटन किया गया फिर दुगड्डा आजादी मिलने तक स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र रहा।
दुगड्डा के नाथुपुर के जंगलों में अपने साथी भवानी सिंह रावत के आमंत्रण पर महान क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद ने गुप्त रूप से शास्त्रों का अभ्यास किया ।

सन् 1940 के बाद धीरे धीरे दुगड्डा की तस्वीर बदलने लगी व् कोटद्वार रेल आ जाने के कारण दुगड्डा का व्यापार धीरे धीरे कोटद्वार विस्थापित होने लगा और व्यापार में कमी होने के कारण व्यापारी भी धीरे धीरे पलायन करने लगे । दुगड्डा सिर्फ राजनीतिक या व्यापारिक नही बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है ,यहाँ की रामलीला 120 वर्ष पुरानी है जो पूरे गढ़वाल में प्रसिद्ध है।
व्यापार में कमी आने के बावजूद भी यहाँ कुछ पुराने व्यापारियों की पीढ़ी आज भी व्यापार कर रही है।
‌हाल के दिनों में लैंसडौन पर्यटको के आकर्षण का केंद्र बन चुका है , परंतु दुगड्डा को इसका कोई खास लाभ नही मिल पाया है जबकि यह स्थान प्राकृतिक सुषमा से भरपूर दो सुंदर नदियों के मध्य बसा है जहाँ कई प्रकार की जल क्रीड़ाओं का आकर्षण का केंद्र बना पर्यटको को आकर्षित किया जा सकता है , तथा यहाँ की रोजगार और व्यापार की समस्याओं को दूर किया जा सकता है । अन्यथः दुगड्डा व इससे सेवित क्षेत्र पलायन की राह पर है।

आयुष कुमार अग्रवाल

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button