केदारनाथ आपदा को एक दशक पूरा: भयंकर तबाही के अभी भी बाकी है निशान
आयुष अग्रवाल
प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट और उत्तराखंड सरकार के सराहनीय प्रयास के कारण हर वर्ष रिकार्ड बढ़ रही है केदारनाथ में आने वाले भक्तो की संख्या। इसके बावजूद आज भी भयावह आपदा के कई निशान मौजूद है तथा अभी भी देवभूमि पर मंडरा रहे है खतरे के बादल ।
केदारनाथ आपदा को दस वर्ष का समय पूर्ण हो गया है। सरकारी रिकार्ड के अनुसार लगभग 4400 लोगो की हुई थी मृत्यु और आज भी हजारो लोग है लापता। 10 साल के समयखण्ड में केदारनाथ सहित पूरी देवभूमि में इस आपदा के दुष्प्रभावों को खत्म करने के विभिन्न प्रयास किये गए है। यहां तक की प्रधामंत्री मोदी भी केदारनाथ का कई बार दौरा कर चुके है। इसका सकारात्मक प्रभाव भी पढ़ा है । वर्तमान वर्ष में 10 साल पहले की तुलना में लगभग ढाई गुना भक्तो के बाबा केदार के दर्शन करने आने की उम्मीद है। सरकार द्वारा केदारपुरी को काफी हद तक सुरक्षित भी बना दिया गया है। आल वैदर रोड का निर्माण अंतिम दौर में है । मंदिर के चारो और सुरक्षा चार दीवारी कर दी गई है। इन सभी प्रयासों के बावजूद आज भी कई जगह पर इस भयावह आपदा के जख्म दिखाई दे जाते है। आज भी लोग अपने बिछड़े परिजनों की तलाश कर रहे है। और केदारघाटी में अब भी कई शव दफन है।
कब क्या क्या हुआ था
14 जून 2013 को शुरू हुई थी बारिश।
16 जून की शाम को चौराबाड़ी ताल टूटा जिससे मंदाकिनी में आई बाढ़ और रामबाड़ा का अस्तित्व मिटा।
17 जून को दुबारा चौराबाड़ी ताल से आया मलवा और पानी जिससे केदारनाथ धाम और मंदिर को पहुंचा भयंकर नुकसान।
18 जून को केदारनाथ तबाही की प्रथम बार सरकार को लगी खबर ।
19 जून को सरकार ने आपदा को किया स्वीकार ।
लापरवाही या आस्था को ठेस क्या था केदारनाथ आपदा का कारण
केदारनाथ आपदा के कारण तो ज्ञात है लेकिन इन कारणों के पीछे तत्कालीन सरकार की नाकामयाबी और लापरवाही भी छिपी है । मौसम विभाग की आशंकाओं और भारी बारिश की चेतावनी को नजर अंदाज करना 2004 से विभिन्न पत्रकारों और वैज्ञानिको की चौराबाड़ी ग्लेशियर पर चेतावनी और आशंका को नजर अंदाज करना तथा विभिन्न गलतियाँ तो इस आपदा का कारण है ही साथ साथ लोगो का यह भी मानना है कि इसका एक धार्मिक पहलु भी है जो केदारघाटी में हो रहे अधार्मिक गतिविधियो पर संकेत करता है। केदारनाथ एक धार्मिक जगह है जिस प्रकार केदारनाथ को एक पर्यटन का स्थल के रूप में प्रोजेक्ट कर यहाँ मॉस मदिरा का सेवन और यात्रियों द्वारा अनैतिक कार्यो को किया जाना बाबा केदार के इस प्रकोप को लाने का मुख्य कारण है।
चारो धामों कि रक्षक धारी देवी कि मूर्ति हटाना भी माना जाता है कारण
सिद्धपीठ धारी देवी का मंदिर पौड़ी जिले के श्रीनगर से करीब 13 किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी किनारे पर स्थित था। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के के कारण यह मंदिर भी बाँध के अंतर्गत आ रहा था । इसके लिए इसी स्थान पर परियोजना संचालन कर रही कंपनी की ओर से पिलर खड़े कर मंदिर का निर्माण कराया जा रहा था, खा जाता है कि जैसे ही धरी देवी कि मूर्ति तो उसके तत्कालीन स्थान से हटाया गया। धारी देवी का प्रकोप देखने को मिला और यह भयावह आपदा आई। क्यूकि धारी देवी उत्तराखंड को चारो धामों कि रक्षक भी कही जाती है। जिससे इस धार्मिक तर्क को बल मिलता है।
आज भी केदारघाटी और देवभूमि में कई खतरे मौजूद
हाल ही में देवभूमि में स्तिथ और चार धाम यात्रा के मुख्य पड़ाव जोशीमठ कि घटना सामने आई थी कि किस तरह जोशीमठ में जमीन का भू-धंसाव हो रहा है। जिसका मुख्य कारण सरकार के अनुसार जोशीमठ में पानी की निकासी की कोई व्यवस्था न होने है । इसके अलावा अलकनंदा नदी के कारण हो रहे कटान भी भू-धंसाव का मुख्य कारण था । लेकिन स्थानीय नागरिको और कई भू वैज्ञानिको का मानना है कि इसका मुख्य कारण एनटीपीसी द्वारा बिजली परियोजना के लिए बनाई गयी सुरंग है जो जोशीमठ के निचे से होकर गुजरती है। और उसमे कंपनी द्वारा लगातार धमाके किये जा रहे है । इसके आलावा चाहे ऑल वैदर हो या टिहरी डेम सभी के दुष्प्रभाव समय समय पर सामने आते रहते है। तथा कई पर्यावरणविदो का मानना है कि विकास के नाम पर जिस तरह प्रकृति को नुकसान पहुंचायाँ जा रहा है। यह भी देवभूमि और केदारनाथ में नयी आपदाओं कि आशंकाओ को पैदा करता है।