कुमायूँ मंडल

हल्द्वानी के 4000 से अधिक परिवारों पर मंडराया बेघर होने का खतरा, लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से लगाई गुहार

हल्द्वानी में रेलवे के स्वामित्व वाले क्षेत्र में रह रहे 4,000 से अधिक परिवारों को बेदखली नोटिस दिया गया है. हजारों लोग अपने घरों से बेघर होने के डर की वजह से सड़कों पर उतरकर हंगामा कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की कार्यशैली की तर्ज़ पर उत्तराखंड में भी अब बुलडोज़र की धमक बड़े पैमाने पर दिख रही है. वहीं अब हल्द्वानी में  रेलवे के स्वामित्व वाले क्षेत्र में रह रहे 4,000 से अधिक परिवारों को बेदखली नोटिस दिया गया है. हजारों लोग अपने घरों से बेघर होने के डर की वजह से सड़कों पर उतरकर हंगामा कर रहे हैं. इन परिवारों पर बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है. हल्द्वानी में इन परिवारों को जमीन खाली करने का नोटिस दिया गया था. दावा किया जा रहा है कि ये परिवार पिछले एक दशक से अनधिकृत कॉलोनियों में रह रहे हैं. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि सभी अवैध निवासियों को 7 दिनों के अंदर परिसर खाली करना होगा. वहीं अब बनभूलपुरा के निवासियों ने शहर में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने संबंधी जल्द में आए हाई कोर्ट  के फैसले के खिलाफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपील की है.

कांग्रेस सचिव काजी निजामुद्दीन ने मीडिया को बताया कि हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश के नेतृत्व में क्षेत्र के निवासियों ने हाई कोर्ट के फैसले को  में चुनौती दी है. काजी निजामुद्दीन ने बताया कि काजी निजामुद्दीन मामले की सुनवाई पांच जनवरी को करेगा. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी अनुरोध किया है कि वे अतिक्रमण हटाने संबंधी इस आदेश पर मानवीय तरीके से विचार करें, क्योंकि ऐसा होने पर 4,500 लोग बेघर हो जाएंगे. मंगलौर के पूर्व विधायक निजामुद्दीन ने कहा कि वे लोग इलाके में 70 साल से रह रहे हैं. यहां एक मस्जिद, मंदिर, पानी की टंकी, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, 1970 में डाली गई एक सीवर लाइन, दो इंटर कॉलेज और एक प्राथमिक विद्यालय हैं. काजी निजामुद्दीन ने आगे कहा कि हम प्रधानमंत्री, रेल मंत्री और मुख्यमंत्री से अपील करते हैं कि वे इस तथा-कथित अतिक्रमण को हटाने पर मानवीय पहलू से विचार करें. पूर्व विधायक ने जमीन पर रेलवे के दावे पर भी संदेह जताया और कहा कि इसके कुछ हिस्सों को पट्टे पर दिया गया था. उन्होंने सवाल किया कि अगर यह रेलवे की जमीन है तो राज्य सरकार ने इसे पट्टे पर कैसे दिया होगा? इस मामले में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बीते 20 दिसंबर को फैसला सुनाया था. कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे.

 

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