रुद्रनाथ की भूमि पर नारद को मिला था संगीत का ज्ञान, फिर कहलाया रुद्रप्रयाग
हिमांशु सेमवाल
“”रुद्रप्रयागे तन्वंगि सर्वतीर्थोत्तमे शुभे ।
यत्र नागाश्च शेषाद्याःतपश्चक्रुर्महात्मनः।।
रुद्रनाथं नमस्कृत्य पार्वतीं परमेश्वरीम् ।
देवर्षिं नारदञ्चैव प्रणमामि सुरोत्तमान्।।””
अर्थात – समस्त तीर्थो में रुद्रप्रयाग सबसे शुभ और उत्तम है, यहाँ पर शेष नाम आदि तपस्या में लीन रहते है, पार्वती के सहित परमेश्वर भी भगवान रुद्रनाथ को प्रणाम करते है। समस्त देव समुदाय, देवर्षि नारद जी के ईश्वर के रुद्र रूप के समक्ष नतमस्तक होते हैं। जो भी व्यक्ति रुद्रनाथ सहित माँ पार्वती को और देवर्षिं नारद सहित अन्यसभी श्रेष्ठ देवताओं की स्तुति रुद्रनाथ की इस तपोभूमि पर करता है। ईश्वर उसका कल्याण करते हैं।
पंच प्रयागों में प्रसिद्ध रुद्रप्रयाग जहाँ पर तन मन को पवित्र करने वाली अलकनन्दा और मंदाकिनी का पवित्र संगम स्थल है। रुद्रप्रयाग के पावन तट पर भगवान श्री रुद्रनाथ जी का दिव्य मन्दिर अपनी करुणा के शांत रूप को दर्शाता है। भगवान रुद्रनाथ का सम्पूर्ण वर्णन शिव महापुराण में भी देखने को मिलता है। इस मंदिर में भगवान शिव के रौद्र रूप के शांत स्वरूप का दर्शन होता है। माना जाता है कि रुद्रप्रयाग की देवभूमि से ही सर्वप्रथम संगीत की उत्पत्ति हुई थी। पौराणिक मान्यता है कि, जब संगम तट पर खड़े होकर देवर्षि नारद जी ने शिव की तपस्या की थी, तब नीलकंठ शिव ने प्रशन्न होकर नारद जी को संगीत का ज्ञान दिया। जिसमें नारद जी ने नाद संगीत के साथ महती नाम की वीणा को प्राप्त किया। यह पहली बीणा थी जिससे संगीत के सुरों की उत्पत्ति हुई। तभी से मान्यता है कि, संपूर्ण विश्व मे संगीत की सर्वप्रथम भारत मे उत्पत्ति हुई। जसके बाद नारद जी ने “हरी नाम का संकीर्तन” कर जन मानुष को पवित्र किया। कहा जाता है कि आज भी विशेष पर्वों पर रुद्रनाथ मंदिर में रात्रि के समय वीणा का स्वर सुनाई देता है। आचार्य दीपक नौटियाल के अनुसार जो भी निसन्तान दंपत्ति रुद्रनाथ जी की पूजा आराधना करती है, रुद्रनाथ जी की कृपा से निसन्तान को सन्तान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि, रुद्रनाथ जी की कृपा से असाध्य रोग भी भक्ति करने से ठीक हो जाता है, जिसको प्रमाणिकता के तौर पर महसूस भी किया गया है। वहीं प्रत्येक दिन वेद भवन सँस्कृत महाविद्यालय के छात्र वेद ध्वनि से भगवान का स्तुवन करते है। भगवान रुद्रनाथ की कृपा इतनी असीम है कि, जो भी भगवान की सेवा करता है। उसे कभी भी बाबा भूखा नही रखते। लेकिन इस भूमि पर जिसने भी धन, बैभव का घमंड किया उसका पतन भी सीघ्र होता है। साथ ही मंदिर परिसर में सदैव ही पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।