स्वास्थ्य महकमें में चार साल की डिग्री धारकों के लिए नहीं है कोई जगह
सौरभ गुसाईं , देहरादून | उत्तराखंड जैसे विषम भौगोलिक प्रदेश के लिए स्वास्थ्य एक अहम मुद्दा रहा है और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा दूर गावों तक पहुंचे यह भी एक बड़ी चुनोती बनी रहती है. उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल किसी से छुपा हुआ नहीं है. ऐसी स्तिथि में भी उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग अभी अधिक शिक्षित पात्र को नौकरी के लायक नहीं मानता है. बात हो रही है फार्मेसी में सेवा की अहर्ता पूरी करने की. दरअसल उत्तराखंड का स्वास्थ्य विभाग अभी तक फार्मेसी की 4 साल पढ़ाई कर स्नातक और परास्नातक के डिग्रीधारियों को विभाग में सेवा देने योग्य नहीं मानता है. वहीं विभाग केवल दो वर्ष पढ़ाई कर डिप्लोमा हांसिल करने वाले को चिकित्सालयों बड़े पदों जैसे चीप फार्मेसिस्ट के पदों तक भी प्रमोट करता है. हैरत की बात यह है कि डिप्लोमा और डिग्री दोनों फार्मेसी कॉउंसिल ऑफ इंडिया में समान रूप से पंजीकृत भी किये जाते हैं.
क्या कारण है
दरअसल उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग में फार्मेसी की सेवानीयमवली अभी भी उत्तप्रदेश के समय की चली आ रही है. और वह सेवानीयमवली उस समय बनी थी जब फार्मेसी में अधिकतम शिक्षा केवल डिप्लोमा ही हुआ करता था. परन्तु समय बदला ओर शिक्षा का स्तर भी बदला और फार्मेसी में अब डिप्लोमा से ले कर phd तक होने लगी. दूसरी तरफ उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग की सेवानीयमवली अभी भी केवल डिप्लोमा को ही अधिकतम शिक्षा मानती है और डिप्लोमा को ही फार्मसिस्ट के पदों के योग्य मानती है. विडंबना देखिए उत्तराखंड सरकार खुद पूरे प्रदेश में 18 से 19 तक सरकारी और गैर सरकारी कॉलेजों में फार्मेसी में स्नातक और परास्नातक के कोर्स करवाती है. एक कॉलेज में 60 सीट की गणित से डेढ़ हजार के करीब युवा यह पढ़ाई कर निकलते हैं.
एक बच्चा स्नातक में फार्मेसी में करीब 7 से 8 लाख केवल शुल्क जमा करता है. केंद्र सरकार और पड़ोसी पर्वतीय राज्य हिमाचल समेत कई राज्य सरकार पंजीकृत सभी फार्मसिस्ट को समान अवसर प्रदान करती है परन्तु उत्तराखंड ऐसा करने को राजी नहीं है. उत्तराखंड स्नातक फार्मेसी संघ के सौरभ गुसाईं कहते हैं कि उन्होंने बी जे पी और कांग्रेस दोनों सरकारों में कई माध्यम से सरकार को सेवानीयमवली में संसोधन का आग्रह किया परन्तु किसी ने उनकी यह मांग आजतक स्वीकार नहीं की. प्रदेश में हजारों युवा फार्मेसी में स्नातक की पढ़ाई करने के बाद बेरोजगार बैठे हैं और लॉकडाउन के दौरान दवा कंपनियों में भी कार्य करने वाले हजारों युवाओं ने नॉकरियां चले जाने से वापस घरों को पलायन किया है. सचिव आशीष असवाल कहते हैं कि यदि प्रदेश सरकार अधिक शिक्षित फार्मासिस्टों को नौकरी योग्य नहीं मानती तो सरकार को तत्काल सभी कॉलेजों को बंद कर देना चाहिए, यह बेरोजगारों के साथ सरकार का बहुत बड़ा छलावा है.
किस तरह प्रशिक्षितों का उपयोग कर सकता है विभाग- विगत दो वर्षों से पूरी दुनियां में कोविड जैसे महामारी के कारण स्वास्थ्य के मोर्चे से बहुत बड़े संघर्ष झेले हैं. इससे हमारा देश भी अछूता नहीं रहा. और उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में तो स्वास्थ्य सुविधाओं का हमेशा से अभाव रहा है और हमेशा स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित कर पाना एक बड़ा विषय रहा है. ऐसे में प्रदेश के पास फार्मेसी में स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुके हजारों युवा उपलब्ध हैं. चार वर्षों के अपनी पढ़ाई के दौरान वे शरीर विज्ञान के साथ साथ दवाओं का उचित ज्ञान अर्जित कर लेते हैं. राज्य सरकार दूरस्त ऐसे गाँव जहां डॉक्टरों का अभाव है वहाँ इन प्रशिक्षितों को तैनाती दे कर उन गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं में परिवर्तन ला सकती है.