देहरादून: उत्तराखंड में चुनावी गहमागहमी के बीच एसडीसी फाउंडेशन ने प्रदेश के नौ पर्वतीय जिलों के चुनावी आंकड़ों को लेकर एक और रिपोर्ट जारी की है। उत्तराखंड में महिलाओं को राज्य की आर्थिकी की रीढ़ कहा जाता है, लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि राज्य में महिलाएं लोकतंत्र की रीढ़ का काम भी कर रही हैं। मतदान प्रतिशत बढ़ाने के चुनाव आयोग के तमाम प्रयासों के बावजूद जहां राज्य में पुरुषों का मतदान प्रतिशत कम हैं, वहीं महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मतदान कर रही हैं।
एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल के अनुसार उनकी संस्था पिछली बार के चुनाव नतीजों का अलग-अलग एंगल से विश्लेषण कर रही है। उनका इरादा इस तरह के विश्लेषण करके लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करना, पलायन के समाधान की ओर ध्यान आकर्षित करना और राज्य में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। चुनाव नतीजों का विश्लेषण इस तरफ भी इशारा करता है कि राज्य के पर्वतीय जिलों मे पलायन की क्या स्थिति है। अनूप नौटियाल के अनुसार यह विश्लेषण हमें यह सोचने पर भी विवश करते हैं कि इस भागीदारी के बावजूद राज्य में महिलाओं को नीतिगत स्तर पर क्यों आज तक हाशिये पर रखा गया है।
अनूप नौटियाल ने कहा कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड के नौ पर्वतीय जिलों की 34 सीटों पर पुरुषों का मतदान प्रतिशत सिर्फ 51.15 और महिलाओं का मतदान प्रतिशत 65.12 था। राज्य के पर्वतीय जिलों की 34 में से 33 सीटों पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाओं ने मतदान किया। पर्वतीय जिलों में उत्तरकाशी की एक मात्र पुरोला विधानसभा सीट पर महिलाओं के मुकाबले 583 ज्यादा पुरुषों ने मतदान किया।
अनूप नौटियाल के अनुसार पर्वतीय जिलों की 33 सीटों के अलावा मैदानी जिलों की 4 सीट, डोईवाला, ऋषिकेश, कालाढूंगी और खटीमा में भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने ज्यादा मतदान किया। पर्वतीय जिलों की 34 सीटों पर औसतन हर विधानसभा सीट पर 28202 महिलाओं और 23086 पुरुषों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और प्रत्येक सीट पर पुरुषों के मुकाबले औसतन 5116 ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले। ज्यादा संख्या में महिला वोटिंग के मामले में बागेश्वर, रुद्रप्रयाग और द्वाराहाट सबसे आगे थे।
बागेश्वर में पुरुषों के मुकाबले 9802, रुद्रप्रयाग में 9517 और द्वाराहाट मे 9043 ज्यादा महिलाओं ने मताधिकार का प्रयोग किया।
अनूप नौटियाल के अनुसार राज्य के पर्वतीय जिलों में मतदान में महिलाओं की इतनी बड़ी भागीदारी के बावजूद प्रमुख राजनीतिक दलों ने बहुत कम संख्या में महिलाओं को टिकट दी है। वे कहते हैं कि आने वाली सरकारों को राज्य में महिलाओं के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर योजनाएं बनानी चाहिए। इसके अलावा यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पलायन और रोजी-रोटी की मजबूरियों के चलते जो लोग वोट नहीं दे पाते उन्हें किस तरह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सके। रिपोर्ट को तैयार करने मे एसडीसी फाउंडेशन के विदुष पांडेय, प्रवीण उप्रेती और प्यारे लाल का सहयोग रहा ।