गढ़- कुमों संस्कृति

सुख समृद्धि और संपन्नता का प्रतीक, उत्तराखंड का ख़ास लोक पर्व हरेला

देवभूमि उत्तराखंड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार कई त्यौहार और पर्व मनाए जाते हैं. ये पर्व और त्यौहार हमारी संस्कृति से जुड़े रहते हैं. देवभूमि की यही खास बात है कि यहाँ की परम्परा और बार त्योहारों में भी प्रकृति के प्रति एक अलग सोच है जिसको लेकर पहाड़ वासियों को हमेशा चिंता रहती है इसी का नाम उत्तराखंडीयत है, और इसी उत्तराखंडीयत का एक जीता जाता उदाहरण है उत्तराखंड लोकपर्व है हरेला. उत्तराखंड में सावन की शुरुआत के मौके पर शुरू होने वाले इस लोकपर्व ‘हरेला’ का अर्थ हरियाली से हैं. जिसे बुजुर्ग जी रया ,जागि रया, यो दिन बार, भेटने रया, दुबक जस जड़ हैजो, पात जस पौल हैजो, स्यालक जस त्राण हैजो, हिमालय में ह्यू छन तक, गंगा में पाणी छन तक, हरेला त्यार मानते रया, जी रया जागी रया. से संबोधित करते हैं.

साल में तीन बार आता है हरेला

वैसे तो पर्व वर्ष में तीन बार आता हैं. पहला चैत मास में दूसरा श्रावण मास में तथा तीसरा साल का आखिरी पर्व हरेला आश्विन मास में मनाया जाता हैं. चैत्र मास में यह प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है. जबकि श्रावण मास में – सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है. इसी तरह आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है. लेकिन श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला को इन तीनों में सबसे खास माना जाता है, यह इसलिए कि सावन यानि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है. https://www.youtube.com/embed/rV3s3qQGy5c

श्रावण मास का हरेला सबसे खास

सावन का महीना हिन्दू धर्म में पवित्र महीनों में से एक माना जाता है. इस महीने भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. और भगवान शिव को यह महीना अत्यधिक पसंद भी है. इसीलिए यह त्यौहार भी भगवान शिव परिवार को समर्पित है. और उत्तराखंड की भूमि को तो शिव भूमि (देवभूमि) ही कहा जाता है. क्योंकि भगवान शिव का निवास स्थान यही देवभूमि कैलाश (हिमालय) में ही है. इसीलिए श्रावण मास के हरेले में भगवान शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती हैं. (शिव,माता पार्वती और भगवान गणेश) की मूर्तियां शुद्ध मिट्टी से बना कर उन्हें प्राकृतिक रंग से सजाया-संवारा जाता है. जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहां जाता है . हरेले के दिन इन मूर्तियों की पूजा अर्चना हरेले से की जाती है. और इस पर्व को शिव पार्वती विवाह के रूप में भी मनाया जाता है.

क्यों मनाते हैं हरेला

हरेला घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है. यह भी मान्यता है कि जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि, अन्न धन्न में उतनी ही वृद्दि होगी. हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलो को नुकसान ना हो. सावन लगने से नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज एक रिंगाल को छोटी टोकरी में मिटटी डाल के बोई जाती हैं. इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है. 9 वें दिन इनकी पाती की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानि कि हरेला के दिन इसे काटा जाता है. और विधि अनुसार घर के बुजुर्ग सुबह पूजा-पाठ करके हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं. उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता हैं.

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