गढ़वाल मंडल

राजा वीरभद्र सिंह की बहन मीना कुमारी की गाड़ी की टक्कर से दूल्हा बीरेंद्र जीवन में आया!

1954 में राजा वीरभद्र सिंह सेंट स्टीफन कॉलेज नई दिल्ली में पढ़ाई कर रहे थे 20 वर्ष की आयु में उनका जुब्बल की राजकुमारी रत्ना कुमारी से विवाह हो गया था.रत्ना कुमारी के पिता की कोठी देहरादून के ईसी रोड़ में भी थी. उन्हें यहां लीची के बागान और देहरादून की सुंदरता मोहित करती थी, रत्ना कुमारी अपनी ननद मीना कुमारी के साथ देहरादून में छुट्टियों बिताने आती रहती थी और वीरभद्र सिंह भी आते जाते रहते थे. देहरादून में  एक दिन गाड़ी में मीना कुमारी ने जिद कर ली कि, मैं गाड़ी चलाऊंगी. ड्राइवर को उनकी जिद माननी पड़ी वह बलबीर रोड की तरफ गाड़ी ले गई.तब बलबीर रोड़ डालनवाला में बहुत कम गिनती के मकान होते थे मीरा कुमारी की गाड़ी बलबीर रोड़ में सेठ गंगाधर तड़ियाल के गेट और दिवार से जा टकराई. गाड़ी की धड़ाम सुन कर सेठ गंगाधर तड़ियाल और उनके पुत्र बाहर आ गए. अच्छे घरों के दिखाई पड़ने और ड्राइवर और सहायक  की पहनी पगड़ी और पहली नज़र में लड़की से अनजान में गलती हो गई, भांप कर गंगाधर तड़ियाल का गुस्सा शांत हो गया था. गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गई थी. उन्होंने अपना परिचय दिया कि यह वीरभद्र सिंह की छोटी बहन हैं, तो सेठ गंगाधर ने अपनी गाड़ी से उन्हें ईसी रोड भिजवाया. फिर चार दिन बाद गाड़ी ठीक करके भी भिजवा दी. वीरभद्र सिंह, और रत्ना कुमारी ने सेठ गंगाधर का व्यवहार देख कर कुछ दिन बाद उन्हें अपने आवास पर चाय पानी पर बुलाया और उनके परिवार के बारे में जाना. गंगा घर के तीन बेटे थे एक का नाम राजेंद्र सिंह तड़ियाल दूसरे का नाम वीरेंद्र सिंह तड़ियाल तीसरे का नाम जितेंद्र सिंह तड़ियाल था. वह तीनों भाई सेंट जोसेफ एकेडमी से पासआउट थे. जब यह तीनों भाई सेंट जोसेफ एकेडमी में पढ़ते थे तब यहां कुल 11 छात्र अध्ययनरत थे. सेठ जी का दूसरा बेटा वीरेंद्र सिंह, उस वक्त टी स्टेट दार्जिलिंग में मैनेजर थे. तब टी स्टेट में मैनेजर रुतबे वाला पद होता था. मीरा कुमारी, को वीरेंद्र पसंद आ गया. इस तरह यह गाड़ी की टक्कर रिश्ते में तब्दील हो गई. बहन के रिश्ते के दौरान वीरभद्र 1962 में पहली बार महासू से संसद थे. तब महासू के अंतर्गत शिमला होता था. टिहरी गढ़वाल के सेठ गंगाधर तड़ियाल की पुरानी टिहरी शहर में पोस्ट ऑफिस, टेलीफोन वाली बिल्डिंगे थी. दोबाटा में तीन मंजिला भवन था. सिराई, सहित उनके पास 10 कोठियां थी. चम्बा के नैलबागी में 100 एकड़ का उनका बगीचा था. जो बगीचा अब छोटा हो गया है. नैलबागी, नरेश अग्रवाल के होटल से 3 किलोमीटर  पैदल चल कर पहुँचा जाता है. कोविड 1 के बाद इस ट्रैक पर डॉक्टर नरेश त्रेहान भी आये थे. त्रेहान मसूरी में रुके हुए थे. नैलबागी उनका घर था. कभी वहां 200 आदमी काम करते थे, खेती, सब्जियां,  इत्यादि …मीरा कुमारी , वीरेंद्र कभी यहाँ देहरादून से आते थे. वह घोड़ों और पालकी से यहाँ पहुँचते थे. टिहरी में सम्पन्नता के बाद वह देहरादून रहने लगे थे. बलबीर रोड़, और नेहरुकालोनी में जमीन और मिल्कियत का  एक बड़ा हिस्सा उनका था. बलबीर रोड़ में खेती, भैंसे, हुक्का गुड़गुड़ाता था. पूरी परम्परा चलती थी. सेठ गंगाधर  तड़ियाल के जाने के बाद मीना कुमारी के पति वीरेंद्र भी चल बसे. बलबीर रोड़ की बड़ी मिल्कियत कब चले गई, पता नहीं चला. संभवत एक भाई अभी जीवित हैं. वह वहीं रहते हैं. तो इस प्रकार राजा वीरभद्र की बहन मीना कुमारी और उनका बेटा रविन्द्र देहरादून से नैलबागी चले गए थे. रविन्द्र  जी जो करीब 50 वर्ष के होंगे, उन्हें मामा वीरभद्र ने परिवार की स्थिति देख कर पुलिस में सब इंस्पेक्टर बना दिया था. वह कड़ी ट्रेंनिग नहीं झेल पाया. और घर भाग आया. मीरा कुमारी ने रविन्द्र की शादी भी किन्नौर से की है. हमें पुरानी टिहरी से नई टिहरी आए हुए 4 साल हो गए थे बात 2004 की है मुझे मेरे वरिष्ठ मित्र वीरेंद्र सिंह चौहान ( पंचू भाई) जो टीएचडीसी में मैनेजर हैं ने कहा कि राजा वीरभद्र सिंह जी की बहन के रिश्तेदार की शादी किन्नौर में है आप चले. गाड़ी घोड़ा , गेस्ट हाऊस सब कुछ बुक है. हिमाचल को देखने का मुझे पहला अवसर मिल रहा था. एक 800 गाडी में मैं और पंचू भाई और उत्तम नेगी थे. दूसरी गाडी 800 में मीरा कुमारी, रविन्द्र, रविन्द्र की पत्नी और दो छोटे बच्चे थे. हिमाचल बॉर्डर शुरू होते ही पांवटा साहिब में मीना कुमारी को एक पुलिस क्षेत्राधिकारी ने रिसीव किया. कुछ देर व्यक्तिगत मुलाकात की. ऐसा समझा गया कि राजा वीरभद्र सिंह ने उस क्षेत्र अधिकारी के माध्यम से अपनी बहन  को संदेश दिया था. और थोड़ी देर चायपानी और थोड़ी देर रुकने के बाद आगे बढ़े. नारकंडा में रात्रि विश्राम हुआ. मीना कुमारी की वीरभद्र सिंह की दूसरी पत्नी प्रतिभा सिंह से बनती नहीं थी. पहली वाली से बनती थी. रत्ना कुमारी के निधन के बाद उन्होंने प्रतिभा सिंह से शादी की थी. शिमला में उनका पहले अपने भाई से मिलने का कार्यक्रम था. लेकिन मुख्यमंत्री जी को कहीं जाना पड़ गया. इसलिए उनके साथ मिलने का कार्यक्रम रद्द हो गया था. वह अपनी भाभी प्रतिभा को मिलना नहीं चाहती थी. जिस कारण मैडम की गाड़ी शिमला के हॉली लॉज न जाकर सीधे आगे बढ़ी.अगली सुबह नारकंडा से किन्नौर घाटी के लिए निकले. पक्के पहाड़ों को चीरते हुए सड़क जा रही थी. नीचे सतलुज नदी बह रही थी. रामपुर में पहुँचे. फिर भावानगर. यहाँ गेस्ट हाऊस था, वहां दिन में लंच और थोड़ा सा आराम  कर शाम को किन्नौर की एक गांव में शादी समारोह में शामिल हुये.भावानगर रामपुर से आगे रामपुर में बुशहर रियासत का हेड क्वार्टर है. भावनगर से ऊपर किन्नौर के उस गांव में हम लोग शादी में पहुंचे. वहां बड़ा स्वागत और सत्कार हुआ हमको रात को मैं रात में पता चला की बारात आने वाली है बारात किस लड़की की है यह किसी भी लड़की को गांव में पता नहीं होता था वहां 2004 में कुछ ऐसा ही रिवाज था.अगली सुबह को हम लोग गांव से निकले फरहान वीरभद्र सिंह के महल में पहुंचे मीना कुमारी ने अपनी भाषा में आवाज दी, चौकीदार को. चौकीदार प्रकट हुये,  चौकीदार के मीरा कुमारी को देखकर आंसू आ गए थे यह खुशी के आंसू दिखाई दे रहे थे. वह बहुत दिनों बाद उन्हें मिल रही थी. सराहन महल के बड़े  हॉल में हमने राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू की आदमकद तस्वीरें दीवारों पर टंगी हुई देखी. इमरजेंसी में वीरभद्र ने इंदिरा गांधी का साथ दिया था, तो बदले में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के बाद रामलाल की जगह वीरभद्र सिंह को हिमाचल की सत्ता सौंप दी थी,  उसके बाद राजा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. राजा भी गांधी परिवार को पूरी इज्जत देते थे. उस हॉल में राजा ने अपनी पुरखों की आदम कद  फोटो नहीं लगाई हुई थी. फिर हम सराहन की देवी मंदिर के में गए वह बुश हर  रियासत के  शासकों की अपनी कुलदेवी है यहाँ  भव्य मंदिर है यहां बहुत श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है सराहन एसएसबी की ट्रेनिंग के लिए भी प्रसिद्ध रहा है बचपन में मैंने सुना कि सराहन का नाम सुना था. उसके बाद लौटते हुए हमने रामपुर बुशहर रियासत का हेडक्वार्टर देखा जहां वीरभद्र सिंह का पार्थिव शरीर शनिवार रात को रखा गया था, वह महल भी एक रियासत का कभी बड़ा केंद्र था.  हिमाचल प्रदेश में करीब 30 रियासतें थी रामपुर रियासत थोड़ा बड़ी हो सकती है.लेकिन और रियासतें छोटी-छोटी हुआ करती थी. बुशहर रामपुर रियासत का दावा है  कि  श्री कृष्ण के वंशज हैं 121 वीं पीढ़ी के राजा पदम सिंह थे जिनकी नवीं पत्नी थी शांति देवी के बेटे थे वीरभद्र सिंह. लौटते हुए हम शिमला के पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में रुके लेकिन फिर भी उनकी बहन अपने भाई को नहीं मिल पाई. वह अपनी बहन को बहुत मानते थे. जिनका कभी पूरा बलवीर रोड था उनके पास देहरादून में जमीन कुछ गज जमीन नहीं थी.  इस बात को वीरभद्र ने समझा और अपने समकक्ष नारायण दत्त तिवारी से बात की. स्वयं पंचू चौहान ने उनकी इस मामले में मदद की और उन्हें पुरानी टिहरी की मिल्कियत के बदले 200 वर्ग मीटर जमीन बंजारावाला में नसीब हुई. देहरादून बहन के घर के लिए राजा वीरभद्र ने शिमला से आर्किटेक्चर भेजें और  हिमाचल की वास्तुकला के हिसाब से बेहद सुंदर मकान बनवाया. उस मकान का भ्रमण भी मैंने हिमाचल यात्रा के बाद भी किया था. उस मकान में  लकड़ी और  संगमरमर अधिक लगा था. रविंद्र सिंह तड़ियाल घर मेंटेनेंस नहीं कर सके. घर तो उन्हीं के पास है लेकिन ज्यादार वह नैलबागी चम्बा टिहरी में कुछ बकरियां और गाय के साथ अपना जीवन का भरण पोषण कर रहे हैं. मीरा कुमारी कभी बंजारावाला में रहती हैं कभी अपने पुत्र रविंद्र के साथ नैलबागी चली जाती हैं. रविंद्र का परिवार बहुत साधारण जीवन व्यतीत करता है. ताजा दूध पीते हैं और चंबा मसूरी फल पट्टी के ऊपर नैलबागी में ताजी हवा खाते हैं. वीरभद्र सिंह ने अपने भांजे को हिमाचल में बसने के लिए कई बार कहा, लेकिन भांजा रविंद्र नहीं माना, उन्हें अपना घर उत्तराखंडी ही पसंद था. रविन्द्र ने बुरे दौर में लोण रोटी खाई हो लेकिन कभी किसी सामने यह नहीं कहा वह 6 बार के  मुख्यमंत्री वी भद्र के भांजे हैं. न उसकी मां ने महिमामंडन किया. वह खामोशी से जीवन जीते हैं, यही अच्छे और गहरे लोगों की पहचान हैं. वीरभद्र की पहली पत्नी रत्नाकुमारी सिंह की तीन पुत्रियां हैं. जिसमें एक पुत्री अभिलाषा कुमारी मणिपुर की मुख्य न्यायधीश है. दूसरी पत्नी से एक पुत्र और एक पुत्री हैं. पुत्र आज 123 वें राजा बने हैं. पुत्री पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह के पोते से भी ब्याही हुई है.मीरा कुमरी तड़ियाल का रिश्ता अपने भाई तक था. वह परिवार के किसी बड़े  रिश्तेदार से गिड़गिड़ाने की मुद्रा में कभी नहीं रही. उनकी शिक्षा भी अपने भाई की तरह शिमला की एक बड़े अंग्रेजी स्कूल में हुई थी. वह स्वाभिमानी, इज्जतदार लेडी है. आज जनता का राजा वीरभद्र सिंह जी पंचतत्व में विलीन हो गये.  उन्हें पुनः विनम्र श्रद्धांजलि. शीशपाल गुसाईं वरिष्ठ पत्रकार

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