पर्यटन- तीर्थाटन

विश्वकर्मा दिवस विशेष: गर्तांगली का आधुनिक शिल्पी राजपाल बिष्ट

पुष्कर रावत, वरिष्ठ पत्रकार। इन दिनों उत्तरकाशी की गर्तांगली चर्चा में है। करीब डेढ़ सौ साल पुराना यह रास्ता किसने बनाया इस पर अभी शोध की जरूरत है। लेकिन हेरीटेज महत्व के इस पुल को नया रूप देने वाले राजपाल बिष्ट को उत्तरकाशी के लोग बखूबी जानते हैं। पुल बनाने में महारत रखने वाले इस युवा ठेकेदार ने एक जोखिमभरी राह को आसान बना दिया। दरअसल इस काम के लिए वन विभाग और लोनिवि को काफी माथापच्ची करनी पड़ी। इसके खतरे को देखते हुए और कोई तैयार नहीं हुआ तो राजपाल बिष्ट आगे आए। उनसे बहुत पुरानी मित्रता होने के कारण मुझे उनकी कार्यशैली मालूम है। नफा नुकसान से ज्याआदा उनका ध्यान काम के महत्व पर रहता है। उनसे लगातार संपर्क के कारण गर्तांगली के जीर्णोद्धार की हर खबर मुझे मिलती रही। संयोगवश देहरादून में हम दोनों पड़ोसी हैं। लिहाजा पुल के लिए देवदार की लकड़ी का इंतजाम करते वक्त मैं उनके साथ ही मौजूद था।
दिसंबर 2020 में गर्तांगली के जीर्णोद्धार का काम शुरू होना था। लेकिन इस उच्च हिमालयी इलाके में भारी बर्फवारी बाधा बन गई। फरवरी में मौसम ठीक हुआ तो राजपाल ने अपनी छह लोगों की टीम के साथ गर्तांगली में कदम रखा। पुल का मुआयना करते हुए वे हैरान थे। डेढ़ सौ साल पहले चट्टान को इस तरह तराशकर काटना और उस पर होल करने की तकनीक कैसी रही होगी। जबकि तब ना सड़क थी ना आज की तरह पैट्रोल डीजल या बैटरी चलित मशीनें। आज भी वहां तक सीमित संसाधन ही पहुंचाए जा सकते हैं। खैर उन्होंने काम शुरू कर दिया। लेकिन जल्द टीम के लोग जवाब देने लगे। इस इलाके में दोपहर के समय बहुत तेज हवाएं चलती हैं। धूल के साथ ठंडी हवा का बवंडर शरीर को चीरता हुआ सा लगता है। उन्हेंं दूसरी टीम तैयार करनी पड़ी। यह सिर्फ एक बार नहीं हुआ बल्कि चार महीने में चार टीमें बदलने के बाद पुल तैयार हो सका।

पुल बनाने के विशेषज्ञ मजदूरों की टीम के साथ राजपाल खुद मौके पर रहे। एक जगह ऐसी भी आई जहां लकड़ी तख्तों को फिट करने के लिए खड़़ी चट्टान पर सेफ्टी बेल्ट के सहारे लटकना था। लेकिन वहां ऊपर की ओर कोई भी पेड़ या खूंटा गाड़ने की जगह नहीं थी। राजपाल ने खुद किसी तरह ओवरहैंग चट्टान के काफी ऊपर चढ़कर हल्की उभरी दरारों पर रस्से को फंसाया। तब जाकर मजदूरों ने खाई की ओर लटकर यहां स्लीपर फिट किए। ऐसे ही एक और जगह पर पुराने तख्ते और स्लीपर उखाड़ने के बाद चट्टान की ओर रास्ता ना के बराबर था। करीब पंद्रह मीटर तक पांव भर रखने की जगह के साथ सीधी खाई थी। मजदूरों के कदम यहां रुक गए। यहां भी राजपाल ने चट्टान से चिपककर यह दूरी पहले खुद तय की फिर मजदूरों को पार करवाया। काम के लिहाज से यही सबसे खतरनाक स्पॉट भी था।

करीब पांच महीने की मशक्कत के बाद पुल तैयार हो गया। अब हेरीटेज महत्व वाले इस पुल का नया रूप पर्यटकों को लुभा रहा है। लेकिन वह भी समय था जब गर्तांगली की ओर कोई झांकता भी नहीं था। तब पुराना और जर्जर हो चुका यह रास्ता बेहद खतरनाक था। लिहाजा कोई भी इसका रुख नहीं करता। तब साल 2011 के अक्टूबर में सबसे पहले मैंने एक खबर में गर्तांगली को रिपोर्ट किया। उसके बाद इस ओर ध्यान जाना शुरू हुआ। स्थांनीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे लोगों ने इसके जीर्णोद्धार की मांग शुरू कर दी। कुछ उत्साही पर्यटन व्यवसायी गर्तांगली पहुंचकर इसके ठीक ठाक हिस्से में चहलकदमी करने लगे। फिर काफी जद्दोजहद के बाद वन विभाग ने इसके जीर्णोद्धार का फैसला किया। पर्यटन और वन महकमे के साथ ही उत्तरकाशी के पर्यटन व्यवसायियों को राजपाल बिष्ट जैसे कर्मयोद्धाओं को सम्मान देना चाहिए। जो नफा नुकसान से ज्यादा लोकहित को महत्व देते हैं।

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